पंजाब मीडिया न्यूज़ (दिल्ली): केंद्र सरकार की ओर से शुक्रवार को लोकसभा में तीन नए बिल पेश किए गए। इसमें भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 शामिल हैं। इन तीन विधेयकों को भारतीय न्यायिक प्रणाली में प्रमुख सुधारों की नींव के रूप में पेश किया गया था। पिछले 70 वर्षों में, भारतीय दंड संहिता 1860 (आईपीसी), आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1898 (सीआरपीसी) और साक्ष्य अधिनियम में बदलाव किसी भी सरकार द्वारा आपराधिक कानून में किए जा रहे सबसे बड़े बदलावों में से एक होने जा रहे हैं।
‘बलात्कार के लिए हो सकती है मौत तक की सज़ा’
इन विधेयकों में सबसे खास बात जो ध्यान खींचती है वो ये है कि महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ होने वाले अपराधों में दोषियों के खिलाफ सख्ती बढ़ाने का प्रस्ताव किया गया है. उदाहरण के लिए, बलात्कार के लिए न्यूनतम सज़ा सात साल से बढ़ाकर दस साल कर दी गई है, जबकि नाबालिगों के खिलाफ बलात्कार के लिए अलग कानून बनाए गए हैं। इसके तहत 16 साल से कम उम्र की नाबालिग से रेप पर अधिकतम आजीवन कारावास की सजा होगी, जबकि 12 साल से कम उम्र की नाबालिग से रेप पर मौत की सजा हो सकती है। खास बात यह है कि नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म के मामले में भी मौत की सजा दी जा सकती है। इसके साथ ही यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं की पहचान की रक्षा के लिए भी नया कानून लाया गया है. इसके अलावा पहली बार किसी महिला को धोखा देकर उसके साथ यौन संबंध बनाना भी कानून ने अपराध बना दिया है.
…लेकिन वैवाहिक बलात्कार का मुद्दा बना हुआ है
इन सबके बावजूद और कई अन्य आमूल-चूल बदलावों के बाद भी, एक चीज़ जो जस की तस है, वह है वैवाहिक बलात्कार। नये कानूनों के तहत भी विवाह संस्था में बलात्कार अपवाद बना हुआ है। इनमें धारा 63 के अपवाद 2 में कहा गया है कि ”किसी व्यक्ति द्वारा अपनी ही पत्नी, जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम न हो, के साथ यौन संबंध या यौन कृत्य बलात्कार नहीं है.”