कुछ लोगों में ओसीडी यानी ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसॉर्डर की समस्या होती है. ये एक मानसिक विकार होता है जब व्यक्ति अपने नियंत्रण में नहीं होता है और न चाहकर भी एक ही काम बार-बार करता रहता है. ओसीडी में सिर्फ एक ही तरह के विचार मन में चलते रहते हैं. इसकी बड़ी समस्या ये है कि व्यक्ति को पता ही नहीं चलता कि उसके मन में जो विचार आ रहे हैं वो सही भी हैं या नहीं.
ओसीडी कई तरह की होती हैं जैसे चीजों को बार-बार व्यवस्थित रखना, धार्मिक कार्य करना, कोई फिजिकल एक्टिविटी, बार-बार कपड़ों के बटन और घर के दरवाजे और लाइट्स चेक करना आदि. इनमें से एक है जरूरत से ज्यादा सफाई रखने की ओसीडी. इस ओसीडी में लोगों पर हर समय सफाई की धुन सवार रहती है. इसमें व्यक्ति को बार-बार नहाने, हाथ धोने और दांतों को साफ करने की आदत होती है.
इस ओसीडी से ग्रस्त लोग अपनी सफाई के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं और उन्हें लगता है कि कुछ भी छू लेने से उनके हाथ गंदे हो गए हैं. इसलिए ये लोग बार-बार अपने हाथ धोते रहते हैं. कुछ लोगों को सफाई का ऐसा जुनून सवार हो जाता है कि वो बिना सोचे-समझ हर चीज धो देते हैं फिर भले वो रूपए तक ही क्यों न हो.
ऐसे लोग सफाई के प्रति ऑब्सेस्ड होते हैं. सफाई का जुनून इन पर इस कदर हावी हो जाता है कि इनके साथ रहने वाले लोग भी इनसे परेशान हो जाते हैं. हाल ही में ऐसा एक मामला कर्नाटक के मैसूर से आया था. यहां एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी की सफाई के जुनून से परेशान होकर उसकी हत्या कर दी और बाद में आत्महत्या भी कर ली.
उसकी पत्नी अपने साथ-साथ अपने बच्चों को भी दिन में कई बार नहलाती थी. यहां तक कि उसका पति उसे जो रुपए देता था वह उन नोटों को भी धोती थीं. इस महिला का मानना था कि इन नोटों को दूसरे धर्मों और जातियों के लोग छूते हैं जिससे वह गंदा हो जाता है.
जरूरत से ज्यादा सफाई की ये ओसीडी बार-बार हाथ धोने से शुरु होती है. धीरे-धीरे इंसान को खुद को जरूरत से ज्यादा साफ रखने की सनक हो जाती है और फिर लोग दिन में कई बार नहाने लगते हैं. शुरुआत में तो लोग इसे साफ-सफाई का शौक समझ कर नजरअंदाज करते हैं लेकिन धीरे-धीरे ये बीमारी बन जाती है.