जालंधर (ब्यूरो): पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों से हर कोई परेशान है। वाहनचालकों की मानें तो इन कीमतों ने उनके घर का बजट तक बिगाड़ दिया है। लोग केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को कोसते हैं लेकिन सरकारें एक-दूसरे पर दोषारोपण के साथ कहती हैं कि वे मजबूर हैं। अब लोगों के मन में सवाल है कि आखिर पेट्रोल डीजल के रेट बढ़ते कैसे हैं चलिए हम आपको बताते हैं:
भारत अपनी घरेलू जरूरतों का 84 फीसदी हिस्सा कच्चे तेल के आयात के जरिए पूरा करता है। इसलिए, ब्रेंट क्रूड की कीमतों का घरेलू ईंधन की कीमतों पर सीधा असर पड़ता है। ऑयल मार्केटिंग कंपनियां अंतर्राष्ट्रीय कीमतों के आधार पर ईंधन की कीमतों में संशोधन करती हैं. लेकिन जैसे ही भारत लॉकडाउन में गया, भारत के ओएमसीएस ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 2 महीने के लिए संशोधन करना बंद कर दिया।
यानी कच्चा तेल विदेशों से ख़रीदा जाता है, फिर देश की रिफाइनरियों में पहुँचता है और फिर यहाँ से पेट्रोल पंपों पर पहुँचता है। अमूमन जिस क़ीमत पर हम तेल ख़रीदते हैं, उसमें 50 फ़ीसदी से अधिक टैक्स होता है।
ट्रैवल कर्ब और लॉकडाउन के कारण अप्रैल 2019 की शुरुआत में ब्रेंट क्रूड की कीमत 66 प्रति बैरल से गिरकर 19 डॉलर हो गई थी. यह अब ये फिर से 60 डॉलर प्रति बैरल के पार चली गई हैं। केंद्र सरकार पेट्रोल और डीज़ल पर एक्साइज ड्यूटी लगाती है। एक्साइज ड्यूटी एक तरह का अप्रत्यक्ष कर होता है, जो किसी प्रॉडक्ट के प्रॉडक्शन या फिर मैन्युफैक्चरिंग पर लगता है। प्रति लीटर डीज़ल और प्रति लीटर पेट्रोल पर ये एक निश्चित रकम होती है, यानि कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम घटें या फिर बढ़ें, केंद्र सरकार को उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। हालांकि पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का कहना है कि सर्दियों में पेट्रोल डीजल की कीमतें कम हो जाएंगी।