(Pmn)चुनावी मौसम में पंजाब में पल पल बदल रहे सियासी समीकरण से राजनीतिक दलों के साथ मतदाता भी पसोपेश में हैं। पांच जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में चूक का मुद्दा पिछले करीब दो माह से गरमा रहे तमाम मुद्दों पर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है।
पंजाब विधानसभा चुनाव 2022
भारतीय चुनाव आयोग थोड़ी ही देर में पंजाब विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान कर देगा। इसके साथ ही प्रदेश में आचार संहिता लागू हो जाएगी। पंजाब की 117 विधानसभा सीटों पर चुनाव होना है। पंजाब को मुख्यत तीन क्षेत्रों में बांटा जाता है। माझा, मालवा और दोआबा। इसमें सबसे ज्यादा मालवा में 69 विधानसभा सीटें हैं। यानी जिसने मालवा जीता, वो पंजाब पर राज करता है। पाकिस्तान की सीमा से सटे इस प्रदेश में 2017 से पहले विकास, आतंकवाद और रोजगार के मुद्दे पर चुनाव लड़ा जाता था।
2015 में बरगाड़ी बेअदबी कांड के बाद पंजाब की सियासत बदली और ये मुद्दा इतना बड़ा हो गया कि अकाली दल और भाजपा की सरकार गिर गई। अब 2022 में होने वाले चुनाव में भी ये मुद्दा सबसे बड़ा है। इसके साथ ही इस बार किसान आंदोलन भी पंजाब की सत्ता तय करेगा। किसान आंदोलन को भुनाने में सभी पार्टियां जुटी हुई थीं। हालांकि गुरुपर्व पर पीएम नरेंद्र मोदी की तरफ से कृषि कानून वापस लेने के बाद ये मुद्दा गौण हो गया। लेकिन अब पार्टियां आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले 700 किसानों का मुद्दा जोर शोर से उठा रही हैं।
पांच जनवरी को एकदम बदल गया प्रचार
पांच जनवरी से पहले पंजाब में सभी पार्टियों का चुनाव प्रचार किसानों, बेअदबी, नशा तस्करी और बेरोजगारी पर टिका था लेकिन पांच जनवरी की दोपहर को सारे समीकरण बदल गए। फिरोजपुर में चुनावी रैली करने पहुंचे नरेंद्र मोदी के रास्ते में प्रदर्शनकारी आ गए थे। इसके कारण उनका काफिला बेहद असुरक्षित क्षेत्र में करीब 20 मिनट रुका रहा था। इसके बाद पीएम को वापस दिल्ली लौटना पड़ा था। बठिंडा एयरपोर्ट पर पीएम ने पंजाब के वित्तमंत्री से कहा था कि अपने सीएम को धन्यवाद कहना कि मैं जिंदा लौट पाया। इसके बाद इस मामले पर सियासत गरमा गई थी। भाजपा पंजाब सरकार पर आक्रामक हो गई थी वहीं पूरी पंजाब कैबिनेट भी बचाव में उतर आई।
पीएम की सुरक्षा में चूक का मुद्दा पिछले करीब दो माह से गरमा रहे तमाम मुद्दों पर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। हालांकि इस मुद्दे की तपिश पूरे देश में महसूस की जा रही है, लेकिन पंजाब खास तौर पर मालवा की सियासत पर गहरा असर पड़ सकता है। इस मामले में विभिन्न सियासी दल, पंजाब की कांग्रेस सरकार को घेर रहे हैं। कांग्रेस सरकार को घेरने की राजनीति ही नए सियासी समीकरणों को जन्म दे रही है। सियासी दलों का नफा नुकसान फिलहाल इस मुद्दे के अलावा किसानों के रूख पर टिका दिखाई दे रहा है।
आप के भगवंत मान के बयान पर सोशल मीडिया में उठे सवाल
आम आदमी पार्टी के प्रदेश संयोजक व सांसद भगवंत मान समेत पार्टी के अन्य नेता, पीएम की सुरक्षा में चूक के मुद्दे को गंभीर बता रहे हैं। लेकिन सांसद मान के इस बयान पर भारी संख्या में आम लोग तथा किसान संगठनों से जुडे़ लोग सोशल मीडिया पर सवाल उठा रहे हैं। आप की ओर से ऐसे बयान देने पर लोग अपनी नाराजगी जता रहे हैं। सियासी जानकार इस नाराजगी के गहरे राजनीतिक मायने निकाल रहे हैं।
दूसरी तरफ अकाली दल इस मुद्दे पर दो नावों पर सवार होता दिख रहा है। सुरक्षा में चूक व पीएम की रैली में भीड़ एकत्र नहीं होने को जोड़कर सांप भी मर जाए और लाठी भी नहीं टूटे को सच साबित कर रही है। कांग्रेस के नवजोत सिंह सिद्धू व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की ओर से केंद्र के प्रति किसानों की नाराजगी का हवाला देकर रैली में भीड़ एकत्र नहीं होने का तर्क दिया जा रहा है। इससे किसान वर्ग के करीब आने की सियासत दिख रही है। लेकिन कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक के खिसकने की संभावना जताई जा रही है। भाजपा इसके विरोध में रोष प्रदर्शन करके अपनी राजनीति को धार देने की कोशिश कर रही है।
बहरहाल, राज्य में बहुकोणीय मुकाबले होने की संभावना बन रही है जिसके चलते किसी भी सियासी दल का सटीक आंकलन करना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। पंजाब में नई सुबह के साथ जन्म लेते नए मुद्दे, नई तस्वीर का खाका खींचते दिख रहे हैं और बुनियादी मुद्दे पीछे छूटते दिख रहे हैं।