मई का दूसरा इतवार का दिन,
माँ की ममता का क्या,
यही है क्या एक दिन।
अरे, माँ की तो रोज पूजा करनी चाहिए,
क्योंकि माँ में ही भगवान बसता है।
आज, बैठी मैं मां की तस्वीर लेकर,
उसकी यादों में डूब सी गई।
क्यों मां मुझको तुम इस झूठे,
संसार के जाल में अकेली छोड़कर चली गई।
आज बैठे बैठे यूं ही रोना आ गया,
सामने मां का रूप सलोना आ गया।
गई हो मां जब से ओझल हो कर,
आंखें ढूंढे तुझको रो-रोकर।
सूख गया आंखों का पानी मां तुझको खो कर,
लौट कर आ जाओ ना मां ।
याद आ रही है तुम्हारी मां….
मां तेरी मैं राजकुमारी थी,
जान से भी ज्यादा तुझको प्यारी थी।
जग अंधियारा मां तू उजियाली थी,
स्नेहमयी, प्रेममयी तू तो सबसे न्यारी थी।
दूर हो मां फिर भी पास हो,
बस एक ही है मां तुम से अरदास।
जब भी मैं कभी हूं उदास,
देना अपनी होने का एहसास।
कैसे जी रही हूं मैं तेरे बिना,
बहुत याद आ रही है तुम्हारी मां।
तेरी कोख से जन्म लिया,
तूने है मेरी भाग्य रेखा ।
तेरे रूप में मां मैंने भगवान को धरती पर देखा,
तुम को शत वंदन मेरी प्यारी मां,
याद आ रही है मुझे तुम्हारी मां
(लेखिका राष्ट्रीय परशुराम सेना पंजाब जालंधर जिला महिला मोर्चा महासचिव मानवी ने अपनी मां के लिए कविता लिखी।)