Punjab media news : दिल्ली में सरकारी अफसरों पर चुनी हुई सरकार का ही नियंत्रण रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यह फैसला दिया। कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा- उपराज्यपाल पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन को छोड़कर सभी मामलों में दिल्ली सरकार की सलाह पर ही काम करेंगे।
कोर्ट ने कहा कि दिल्ली भले ही पूर्ण राज्य ना हो, लेकिन इसके पास कानून बनाने के अधिकार हैं। यह निश्चित करना होगा कि राज्य का शासन केंद्र के हाथ में ना चला जाए। हम सभी जज इस बात से सहमत हैं कि ऐसा आगे कभी ना हो।
CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली संविंधान पीठ ने 2019 के जस्टिस भूषण के फैसले से भी असहमति जताई, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली सरकार के पास ज्वाइंट सेक्रेटरी स्तर से ऊपर के अफसरों पर कोई अधिकार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने 18 जनवरी को फैसला सुरक्षित रखा था
दरअसल, ट्रांसफर और पोस्टिंग के अधिकारों को लेकर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव चल रहा था। दिल्ली सरकार का कहना है कि इस मामले में उपराज्यपाल हस्तक्षेप ना करें। और इसी बात को लेकर दिल्ली सरकार ने याचिका लगाई थी।
सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ- CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने फैसला सुनाया। इससे पहले कोर्ट ने 18 जनवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। पांच जजों की संवैधानिक बेंच को यह मामला 6 मई 2022 को रेफर किया गया था।
केंद्र ने की थी बड़ी बेंच के सामने मामला भेजने की मांग
जनवरी में सुनवाई के दौरान केंद्र ने मामले को बड़ी बेंच के सामने भेजने की मांग की थी। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- मामला देश की राजधानी का है। इसलिए इसे बड़ी बेंच को भेजा जाए। इतिहास शायद हमें याद न रहे कि हमने देश की राजधानी को पूर्ण अराजकता के हवाले कर दिया था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से फैसले में देरी को मानदंड नहीं बनाना चाहिए।
इस पर CJI ने कहा- जब सुनवाई पूरी होने वाली है, ऐसी मांग कैसे कर सकते हैं? केंद्र ने इस पर पहले बहस क्यों नहीं की? इसके बाद कोर्ट ने उनकी मांग ठुकरा दी।
दिल्ली सरकार ने जताया था विरोध
केंद्र की मांग पर आपत्ति जताते हुए दिल्ली सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा- यहां ऐसी तस्वीर पेश की जा रही है कि राष्ट्रीय राजधानी को हाईजैक किया जा रहा है। संसद कोई भी कानून बना सकती है, लेकिन यहां अधिकारियों को लेकर नोटिफिकेशन का मामला है। यह मामले में देरी का एक तरीका है, जो केंद्र सरकार अपना रही है।