देश के चर्चित घोटाले, मर्डर, रेप, अपहरण… आपने अक्सर CBI को ऐसे ही मामलों की जांच करते सुना होगा, लेकिन सरकार ने इस बार CBI को एक सिक्के की तलाश का जिम्मा सौंपा है। ये कोई ऐसा-वैसा सिक्का नहीं, करीब 400 साल पुराना 12 किलो के सोने का सिक्का है।
आखिरी बार इसे 1987 में हैदराबाद के निजाम मुकर्रम जाह के पास था। फिर स्विट्जरलैंड में इसकी नीलामी की खबर मिली और उसके बाद से कुछ अता-पता नहीं है।
भास्कर एक्सप्लेनर में हम इस सिक्के की पूरी कहानी बताएंगे। मसलन इसे किसने बनवाया, हैदराबाद के निजाम तक कैसे पहुंचा, इसकी कीमत क्या है और सरकार कैसे इसकी तलाश कर रही है? चलिए, शुरू करते हैं…
जहांगीर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-जहांगीरी में 1000 तोले यानी करीब 12 किलो के सोने के सिक्के का जिक्र किया है। जिसे उन्होंने ईरानी शाह के राजदूत यादगार अली को तोहफे में दिया था। फारसी कैलेंडर के मुताबिक यादगार अली जहांगीर के शासनकाल के 8वें साल के 19 फरवरदीन (तारीख) को आया था। अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक, वो तारीख 10 अप्रैल 1612 रही होगी। यानी अब उस घटना को 410 साल बीत चुके हैं।
उस सोने के सिक्के की भव्यता का बखान करते हुए यादगार अली ने लिखा था- कौकब-ए-ताली यानी सोने के सिक्के का व्यास 20.3 सेंटीमीटर और वजन 11,935.8 ग्राम था और इसे आगरा में ढाला गया था। सिक्के को ढालने वाले टकसाल के कारीगरों को खूब पैसा दिया गया था, क्योंकि उन्होंने न सिर्फ सिक्का बनाया, बल्कि उन पर फारसी में कहावतें भी उकेरी थीं।